जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी : सुरेंद्र हरिदास महाराज

*“🌺जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”!🌺*एक बार एक कवि महोदय हलवाई की दुकान पहुंचेजलेबी ली और वहीं खाने बैठ गये।इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।– ये घटना देख कवि हृदय जगा। वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी।*“काग दही पर जान गँवायो”*– तभी वहां एक लेखपाल महोदय, जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी हैं ! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा –*“कागद ही पर जान गंवायो”*– तभी एक मजनू टाइप लड़का पिटा-पिटाया सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी हैं। काश उसे ये पहले पता होतीं, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था –*“का गदही पर जान गंवायो”*———————————————इसीलिए संत तुलसीदासजी ने बहुत पहले ही लिख दिया था –*“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”!**सदैव प्रसन्न रहिये।**जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*मंगलमय प्रभात स्नेह वंदन प्रणाम.

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