असर्फी कैंसर संस्थान : जमीन विवाद में असर्फी कैंसर संस्थान के पक्ष में आया फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर


Dhanbad : धनबाद के भूली इलाके में असर्फी कैंसर संस्थान को आवंटित 11.92 एकड़ जमीन पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा पॉल बंधुओं के पक्ष में दिए गए आदेश को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 26 अप्रैल 2024 को असर्फी कैंसर संस्थान के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। लगभग 4 वर्षों से मामले की सुनवाई विभिन्न न्यायालय में चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित कार्यवाही करते हुए मात्र 6 महीने के अंदर हाई कोर्ट के निर्णय को रद्द कर दिया। उक्त बातें 2 मई को असर्फी कैंसर संस्थान में आयोजित प्रेस वार्ता में असर्फी कैंसर संस्थान के सीईओ हरेंद्र सिंह ने कही। कहा कि इस संस्थान के बारे में कई भ्रांतियां फैलाई गई थी कि यह संस्थान बंद हो गया है, चल नहीं रहा है। कुछ लोगों ने फर्जी कागजात बनाकर इस जमीन पर दावा ठोका था। फर्जी कागजात कोर्ट में पेश कर मुकदमा लड़ रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनके लिए कठिनाई पैदा हो गई है। अब कोर्ट के सामने वे लोग खुद को कैसे प्रस्तुत करते हैं यह उन्हीं लोगों पर निर्भर करता है?


उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संज्ञान में लिया है और हाई कोर्ट में पारित निर्णय को निरस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की कॉपी हाई कोर्ट को भी भेजा है। असर्फी कैंसर संस्थान के जमीन को लेकर जो विवाद था, वह अब समाप्त हो गया है। यह संस्थान जिस जमीन पर बना है वह आज भी सरकार के खाते में है। कैंसर संस्थान में मरीजों का इलाज चल रहा है। वैसे कुल जमीन 85 एकड़ है, जिसमें 11.92 एकड़ इस संस्थान को आवंटित है। झारखंड सरकार ने पूरे 85 एकड़ जमीन पर अपना दावा ठोका है। इस जमीन को लेकर किसी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए था, लेकिन विवाद का होना दुर्भाग्यपूर्ण रहा, जिससे हम लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ा।


इससे पहले हाई कोर्ट के फैसले पर असर्फी कैंसर संस्थान ने असंतोष जताया था और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को सही नहीं माना। ज्ञात हो कि रेंगुनी मौजा में कुल 85 एकड़ जमीन पर विवाद चल रहा था। इसमें 11.92 एकड़ जमीन को राज्य सरकार ने असर्फी हॉस्पिटल को कैंसर संस्थान संचालन एवं अन्य कार्यों के लिए दिया था, लेकिन इस जमीन को विवादित घोषित कर दिया गया था।


जानें क्या है मामला


उपर्युक्त विषय में सूचित करना है कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति श्री अभय एस ओका एवं श्री पंकज मिथल की खंडपीठ ने दिनांक 9.10.2023 को उपर्युक्त विषय पर सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुनाते हुए सभी पक्षकारों को नोटिस भेजते हुए एक्सेक्यूशन सहित इस मामले में हाई कोर्ट, रांची समेत अभी तक पारित सभी अदालतों के निर्णयों पर रोक लगा दी थी।
बहस के क्रम में झारखण्ड सरकार के अधिवक्ता श्री राजीव द्वेदी ने जोरदार बहस किया तथा झारखण्ड सरकार ने अपना दावा पूरे 85 एकड़ पर ठोक दिया। विद्वान अधिवक्ता ने माननीय सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकारी जमीन के विवाद में निचली अदालत में सुनवाई के दौरान झारखण्ड सरकार को पक्षकार नहीं बनाया गया था और पॉल बंधुओं द्वारा फर्जी कागजात लगाकर जमीन को अपना होने का दावा किया गया था।
सरकार द्वारा 11.92 एकड़ आवंटन मिलने के बाद असर्फी हॉस्पिटल ने कैंसर संस्थान का निर्माण कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रेंगुनी गांव के ग्रामीणों के बीच हर्ष का माहौल है। साथ ही धनबाद और आसपास के कैंसर के मरीजों के लिए यह राहत की बात है, क्योंकि अब कैंसर के ईलाज में होने वाली बाधाएं समाप्त हो गई तथा ईलाज अब अनवरत चलता रहेगा।
विदित हो की असर्फी कैंसर संस्थान में हर प्रकार के कैंसर के मरीजों का ईलाज शुरू कर दिया गया है। मरीजों का रेडिएशन थेरेपी के अलावा सभी प्रकार का इलाज चल रहा है। रेडिएशन के लिए अत्याधुनिक मशीनें लीनियर एक्सेलेटर एवं पेट सिटी स्कैन भी लगाई जा चुकी है।
असर्फी कैंसर संस्थान में डॉ. विप्लव मिश्रा, रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट, डॉ. रमेश कुमार, मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट एवं डॉ. शिवाजी बसु, सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट समेत अन्य कैंसर रोग विशेषज्ञ अपनी पूर्णकालिक सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा रेडिएशन सेफ्टी ऑफिसर एवं अन्य विशेषज्ञ भी उपलब्ध हैं। प्रसंगवश यह भी बताना है कि असर्फी कैंसर संस्थान झारखण्ड का पहला हॉस्पिटल है जहां कैंसर का व्यापक ईलाज संभव है। इस हॉस्पिटल के होने से धनबाद एवं आसपास के लगभग 2 करोड लोगों के लाभान्वित होने की संभावना है। असर्फी हॉस्पिटल के प्रयासों से अब यहां मेडिकल ऑन्कोलॉजी, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, रेडिएशन ऑन्कोलॉजी, हिस्टोपैथोलॉजी, मैमोग्राफी एवं अन्य सभी प्रकार के कैंसर का ईलाज संभव हो गया है।
इस विवाद में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि दत्ता परिवार और पॉल परिवार के बीच इस जमीन का विवाद जमींदारी उन्मूलन के पहले चल रहा था। परन्तु नियमों के अनुरूप 01.01.1956 में जमींदारी उन्मूलन के बाद यह पूरी ज़मीन झारखण्ड सरकार की सम्पति बन गई। यह बात जानते हुए भी दत्ता परिवार ने सहारा इंडिया को पूरा 85 एकड़ जमीन बेच दिया। इसके उपरांत पॉल परिवार ने जय प्रकाश राय के साथ पूरा 85 एकड़ जमीन बेचने के लिए एक एग्रीमेंट किया।
जय प्रकाश राय के साथ पैसों का विवाद होने के उपरांत पॉल परिवार ने यह पूरी 85 एकड़ जमीन भावेश कमोट्रेड को रजिस्ट्री करके बेच दिया। पॉल परिवार अब एक बार फिर से इस ज़मीन को बेचने के लिए जय प्रकाश राय को जिम्मा दे दिया है तथा कोर्ट का आदेश दिखा-दिखा कर जय प्रकाश राय गलत तथ्यों को सामने रख कर कई लोगों से पैसा ठग रहे हैं।
लोगों के हित को ध्यान रख कर भावेश कोमोट्रेड ने आम इश्तेहार भी हाल ही में प्रकाशित करवाया था जिससे की कोर्ट के अंतिम आदेश के पहले लोग किसी के झांसे में न आएं। भावेश कोमोट्रेड और पॉल परिवार पर इनकम टैक्स विभाग ने बेनामी सम्पति ट्रांसक्शन एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए इस पूरे 85 एकड़ जमीन को अपने कब्जे में ले लिया है तथा भावेश एवं पॉल परिवार पर लगभग 78 करोड़ का डिमांड नोटिस जारी किया है।
सरकार के सही समय पर कदम उठाने के कारण फर्जी कागजातों के आधार पर अदालतों की आंखों में धूल झोंककर मूल्यवान सरकारी ज़मीन की लूट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ब्रेक लग गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है।
मौके पर असर्फी हॉस्पिटल के सीईओ हरेंद्र सिंह के अलावा निदेशक उदय प्रताप सिंह, गोपाल सिंह, जयप्रकाश सिंह, शुभांशु राय, संतोष सिंह, डॉ. विप्लव मिश्रा समेत अन्य मौजूद थे।

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