कथावाचक श्री सुरेंद्र हरिदास जी महाराज ने भोला किसान की कहानी सुनाते हुए कहा कि किसी समय नयासर गांव में भागवत कथा का आयोजन किया गया, एक कथावाचक जी भागवत कथा सुनाने आए। पूरे सप्ताह कथा वाचन चला। पूर्णाहुति पर दान दक्षिणा की सामग्री इक्ट्ठा कर घोडे पर बैठकर कथावाचक रवाना होने लगे।उसी गांव में एक सीधा-सदा गरीब किसान भी रहता था जिसका नाम था नंदा जाट। नंदा जाट ने उनके पांव पकड लिए। वह बोला- कथावाचक महाराज ! आपने कहा था कि जो ठाकुरजी की सेवा करता है उसका बेडा पार हो जाता है।आप तो जा रहे है। मेरे पास न तो ठाकुरजी है।, न ही मैं उनकी सेवा पूजा की विधि जानता हूं। इसलिए आप मुझे ठाकुरजी देकर पधारें।कथावाचक जी ने कहा- चौधरी, तुम्हीं ले आना। नंदा जाट ने कहा – मैंने तो कभी ठाकुर जी देखे नहीं, लाऊंगा कैसे ? कथावाचक जी को घर जाने की जल्दी थी। उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भांग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- ये ठाकुरजी है। इनकी सेवा पूजा करना।नंदा जाट ने कहा – महाराज में सेवा पूजा का तरीका भी नहीं जानता। आप ही बताएं। कथावाचक जी ने कहा – पहले खुद नहाना फिर ठाकुरजी को नहलाना। इन्हें भोग चढाकर फिर खाना।इतना कहकर कथावाचक जी ने घोडे के एड लगाई व चल दिए। नंदा सीधा एवं सरल आदमी था । कथावाचक जी के कहे अनुसार सिलबट्टे को बतौर ठाकुरजी अपने घर में स्थापित कर दिया । दूसरे दिन स्वयं स्नान कर सिलबट्टे रूप ठाकुरजी को नहलाया। विधवा मां का बेटा था। खेती भी ज्यादा नहीं थी इसलिए भोग मैं अपने हिस्से का बाजरी का टिक्कड एवं मिर्च की चटनी रख दी।ठाकुरजी से नंदा ने कहा पहले आप भोग लगाओ फिर मैं खाऊंगा। जब ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो बोला- कथावाचक जी तो धनवान थे। खीर- पूडी एवं मोहन भोग लगाते थे। मैं तो गरीब जाट का बेटा हूं, इसलिए मेरी रोटी चटनी का भोग आप कैसे लगाएंगे ? पर साफ-साफ सुन लो मेरे पास तो यही भोग है। खीर पूडी मेरे बस की नहीं है।ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो नंदा भी सारा दिन भूँखा रहा। इसी तरह वह रोज का एक बाजरे का ताजा टिक्कड एवं मिर्च की चटनी रख देता एवं भोग लगाने की अरजी करता।ठाकुरजी तो पसीज ही नहीं रहे थे।यह क्रम नरंतर छह दिन तक चलता रहा। छठे दिन नंदा बोला-ठाकुरजी, चटनी रोटी खाते क्यों शर्माते हो ? आप कहो तो मैं आंखें मूंद लू फिर खा लो। ठाकुरजी ने फिर भी भोग नहीं लगाया तो नहीं लगाया।नंदा भी भूखा प्यासा था। सातवें दिन धन्ना जट बुद्धि पर उतर आया फूट-फूट कर रोने लगा एवं कहने लगा कि सुना था आप दीन-दयालु हो, पर आप भी गरीब की कहां सुनते हो, मेरा रखा यह टिककड एवं चटनी आकर नहीं खाते हो तो मत खाओ। अब मुझे भी नहीं जीना है।इतना कह उसने सिलबट्टा उठाया और सिर फोडने को तैयार हुआ,अचानक सिलबट्टे से एक प्रकाश पुंज प्रकट हुआ एवं धन्ना का हाथ पकड कहा – देख नंदा मैं तेरा चटनी टिकडा खा रहा हूं।ठाकुरजी बाजरे का टिक्कड एवं मिर्च की चटनी मजे से खा रहे थे। जब आधा टिक्कड खा लिया तो नंदा बोला- क्या ठाकुरजी मेरा पूरा टिक्कड खा जाओगे ? मैं भी छह दिन से भूखा प्यासा हूं। आधा टिक्कड तो मेरे लिए भी रखो।ठाकुरजी ने कहा – तुम्हारी चटनी रोटी बडी मीठी लग रही है तू दूसरी खा लेना। नंदा ने कहा – प्रभु ! मां मुझे एक ही रोटी देती है। यदि मैं दूसरी लूंगा तो मां भूखी रह जाएगी। प्रभु ने कहा-फिर ज्यादा क्यों नहीं बनाता।नंदा ने कहा – खेत छोटा सा है और मैं अकेला। ठाकुरजी ने कहा – नौकर रख ले। नंदा बोला-प्रभु, मेरे पास बैल थोडे ही हैं मैं तो खुद जुतता हूं।ठाकुरजी ने कहा-और खेत जोत ले। नंदा ने कहा-प्रभु, आप तो मेरी मजाक उडा रहे हो। नौकर रखने की हैसियत हो तो दो वक्त रोटी ही न खा लें हम मां-बेटे।इस पर ठाकुरजी ने कहा – चिन्ता मत कर मैं तेरी सहायता करूंगा।कहते है तबसे ठाकुरजी ने नंदा का साथी बनकर उसकी सहायता करनी शुरू की। नंदा के साथ खेत में कामकाज कर उसे अच्छी जमीन एवं बैलों की जोडी दिलवा दी।कुछे अर्से बाद घर में गाय भी आ गई। मकान भी पक्का बन गया। सवारी के लिए घोडा आ गया। नंदा एक अच्छा खासा जमींदार बन गया। कई साल बाद कथावाचक जी पुनः नंदा के गांव भागवत कथा करने आए।नंदा भी उनके दर्शन को गया। प्रणाम कर बोला- कथावाचक जी , आप जो ठाकुरजी देकर गए थे वे छह दिन तो भूखे प्यासे रहे एवं मुझे भी भूखा प्यासा रखा। सातवें दिन उन्होंने भूख के मारे परेशान होकर मुझ गरीब की रोटी खा ही ली।उनकी इतनी कृपा है कि खेत में मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम में मदद करते है। अब तो घर में गाय भी है।सात दिन का बंदी का घी- दूध मैं ही भेजूंगा।कथावाचकजी ने सोचा मूर्ख आदमी है। मैं तो भांग घोटने का सिलबट्टा देकर गया था। गांव में पूछने पर लोगों ने बताया कि चमत्कार तो हुआ है। नंदा अब वह गरीब नहीं रहा। जमींदार बन गया है।दूसरे दिन कथावाचक जी ने नंदा से कहा-कल कथा सुनने आओ तो अपने साथ अपने उस साथी को ले कर आना जो तुम्हारे साथ खेत में काम करता है। घर आकर धन्ना ने प्रभु से निवेदन किया कि कथा में चलो तो प्रभु ने कहा – मैं नहीं चलता तुम जाओ।नंदा बोला – तब क्या उन कथावाचक जी को आपसे मिलाने घर ले आऊ। प्रभु ने कहा – बिल्कुल नहीं। *मैं झूठी कथा कहने वालों से नहीं मिलता। जो मुझसे सच्चा प्रेम करता है और जो अपना काम मेरी पूजा समझ करता है मैं उसी के साथ रहता हूं।**सत्य ही कहा गया है ।भगत के वश में है भगवान।
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